भारत देश में मंदिरों को लेकर लोगों की काफी आस्था जुड़ी हुई हैं, इन्हीं मान्यताओं के अनुसार हजारों की संख्या में मंदिर और शिवालय है जिनमें कई तरह की मान्यताएं और चमत्कार जुड़े हुए हैं। लोग अक्सर भगवान को प्रसन्न करने के लिए फल-फूल और प्रसाद चढ़ाते हैं। लेकिन राजस्थान के प्रतापगढ़ में माता का एक अनोखा मंदिर है जहां देवी को प्रसन्न करने के लिए भक्त उन्हे हथकड़ी और बेड़ियां चढ़ाते हैं। लेकिन क्यों है ऐसी मान्यता इसके बारे में आइए जानते हैं कि प्रसाद की जगह इन्हे क्यों चढ़ाया जाता हैं
राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले के ग्राम जोलर में दिवाक माता का प्राचीन मंदिर है। जहां मंदिर में भक्त माता को हथकड़ी और बेड़ियों का चढ़ावा चढ़ाने दूर-दूर से पहुंचते हैं। इस प्राचीन मंदिर के परिसर में 200 साल पुराना त्रिशुल गढ़ा है। जिसमें हजारों श्रृद्धालु हथकड़ियां चढ़ाते हैं। बेड़िया और हथकड़ियां चढ़ाने की कहानी भी बेहद दिलचस्प और रौचक है।
जानते हैं मंदिर से जुड़ी कुछ रोचक कहानी के बारे में..
बेड़िया और हथकड़िया चढ़ाने के बारे में ऐसी मान्यता है कि यहां के लोगों का मानना है कि माता के नाम से यहां पर हथकड़ियां चढ़ाने पर वो अपने आप ही खुल जाती हैं. एक समय था, जब यहां मालवा क्षेत्र के जंगलों में डाकुओं का राज हुआ करता था। डाकू इस मंदिर में दर्शन के लिए आते थे और माता को बेड़िया और हथकड़ी चढ़ाया करते थे। इसी के साथ माता से वह अपनी मन्नत मांगते थे यदि पुलिस के चंगुस से बच जाएंगे तो वे मंदिर में आकर प्रशाद के रुप में हथकड़ी और बेड़ियां चढ़ाएंगे। बस तभी से यहां कई लोग आते हैं जो अपने परिजनों को जेल से छुड़वाना चाहते हैं। इसके लिए ही वे हथकड़ी चढ़ाते हैं।
रियासत काल के एक नामी डाकू पृथ्वीराणा ने जेल में दिवाक माता की मन्नत ली थी कि अगर वह जेल तोडक़र भागने में सफल रहा, तो वह सीधा यहां दर्शन करने के लिए आएगा। गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि दिवाक माता के स्मरण मात्र से ही उसकी बेडिय़ां टूट गई और वह जेल से भाग जाने में सफल रहा. तब से यह परंपरा चली आ रही है. आज भी अपने किसी रिश्तेदार या परिचित को जेल से मुक्त कराने के लिए परिजन यहां हथकड़ी और बेडिय़ां चढ़ाते हैं।
आपको बता दें कि यहां पहुंचने के लिए भक्तों को छोटी-बड़ी पहाड़ियां पार करना पड़ता है और यहां पहुंचने के लिए आप पैदल भी जा सकते हैं। यहां पहुंचा काफी आसान है। माता के मंदिर में लोगों की इतनी श्रृद्धा जुड़ी हुई है कि यहां के जंगलों से एक भी पेड़ नहीं काटा जाता है।
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