आदि शंकराचार्य जी द्वारा स्थापित किये गए देव भूमि भारत के परम पवित्र तीर्थ स्थल- चार मठों में यह परंपरा है कि संन्यास लेने के बाद दीक्षा लेने वाले संन्यासियों के नाम के साथ पहचान के लिए एक विशेष नाम विशेषण भी लगाया जाता है, माना जाता है कि यह विशेषण लगाने से यह संकेत मिलता है कि उक्त संन्यासी किस मठ से है और वेद की किस परम्परा का प्रतिनिदित्व करता हैं, मठ के संन्यासियों के नाम के बाद दीक्षा लेने के बाद कौनसा विशेषण जुड़ जाता है, जानिए-
1- तमिलनाडु राज्य में स्थित रामेश्वरम के श्रृंगेरी मठ के तहत दीक्षा लेने वाले संन्यासियों के नाम के बाद सरस्वती, भारती और पुरी सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है, ऐसा माना जाता है कि विशेषण लगने के बाद दीक्षा लेने वाला उस विशेष संप्रदाय का संन्यासी कहलाता है ।
2- उड़ीसा राज्य के पुरी स्थित गोवर्धन मठ के तहत दीक्षा लेने वाले संन्यासियों के नाम के बाद 'आरण्य' सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है, जिससे उन्हें उस संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है ।
3- गुजरात राज्य के द्वारका धाम स्थित शारदा (कालिका) मठ के तहत दीक्षा लेने वाले संन्यासियों के नाम के बाद 'तीर्थ' और 'आश्रम' सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है । दीक्षा लेने वाला उस विशेष संप्रदाय का संन्यासी कहलाता है ।
4- देमात्मा हिमालय की छाया व पतित पावनी माँ गंगा की गोद में स्थित परम पवित्र देव भूमि उत्तराखंड राज्य के चमोली में स्थित जोशीमठ के तहत दीक्षा लेने वाले संन्यासियों के नाम के बाद 'गिरि', 'पर्वत' और 'सागर' सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उस संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है ।
कहा जाता हैं कि ये सभी मठों के अनुयायी अपने मठों की परमपरा एवं वहां का दिव्य संदेश लेकर देश ही नहीं संपूर्ण दुनियां के कोने कोने में जाते हैं और जनजन में सतमार्ग पर चलने के लिए लोगों को उचित मार्ग दर्शन करते हैं ।
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