
वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि के दिन को मनाते हैं। इस साल यह व्रत 22 मई, शुक्रवार को पड़ रहा है। महिलाएं वट सावित्री का व्रत अखंड सौभाग्य एवं कल्याण की कामना के लिए करती हैं। वहीं दूसरी ओर इसी दिन ज्येष्ठ अमावस्या पर शनि जयंती भी मनाई जाती है, अतः इस कारण से ज्येष्ठ अमावस्या का महत्व और भी बढ़ जाता है। इस दिन शनि देव के पूजन का विशेष विधान है।
वट सावित्री व्रत का महत्व...
वट सावित्री का व्रत करने से स्त्रियों का सुहाग अचल रहता है। सावित्री ने भी इसी व्रत को कर अपने मृत पति सत्यवान को यमराज से जीत लिया था। तब से यह प्रथा चली आ रही है कि जो भी महिला इस दिन सच्चे मन से पूजा करेगी और व्रत रखेगी उसके पति की उम्र लंबी होगी और उस पर आने वाले सभी संकट दूर हो जाएंगे। इस व्रत में सत्यवान सावित्री की यमराज सहित पूजा की जाती है।

इस दिन सभी सुहागन महिलाएं 16 श्रृंगार कर बरगद के पेड़ की पूजा करती है। लेकिन जैसा कि हम सभी जानते हैं कि अभी घर से बाहर निकलना और सार्वजनिक जगहों पर जाना हमारे लिए खतरनाक हो सकता है, आप वट सावित्री व्रत की पूजा अपने घरों में रहते हुए ही करें। कहते हैं ये व्रत आपकी सच्ची श्रद्धा और प्रेम को दर्शाता है, इसीलिए पवित्र मन से घर पर रहकर व्रत का पालन और पूजन करें।
लेकिन इस वर्ष कोरोना महामारी के संक्रमण के चलते इन दोनों ही पर्वों के दौरान लोग न तो मंदिर पहुंच पाएंगे न ही महिलाएं वट वक्ष की पूजा कर पाएंगी। ऐसे में इस बार क्या करना होगा, जिससे देवी देवताओं का पूरा आशीर्वाद मिले... इसे लेकर सभी के मन में कई तरह के प्रश्न उठ रहे हैं।
लॉकडाउन का असर : इस बार वट सावित्री व्रत पर ये करें...
लोगों के मन में उठ रहे इन प्रश्नों को देखते हुए पंडित सुनील शर्मा का कहना है कि बरगद के पेड़ की पूजा त्रिदेव के रूप में ही की जाती है। अगर आप बरगद के पेड़ के पास पूजा करने नहीं जा सकते हैं तो आप अपने घर में ही त्रिदेव की पूजा करें।
MUST READ : यहां हुआ था शिव-पार्वती का विवाह, फेरे वाले अग्निकुंड में आज भी जलती रहती है दिव्य लौ

कुल मिलाकर इस साल यानि 2020 में वट सावित्री व्रत के तहत महिलाएं घर पर ही पूजा करें, हां यदि मुमकिन हो तो वट वृक्ष की एक टहनी लाकर उसे तांबे के लोटे में जल भर कर स्थापित करें। इसके बाद पूजा की शुरुआत गणेश और माता गौरी से करें, फिर वट वृक्ष की पूजा शुरू करें।
लेकिन यदि वट वृक्ष की एक टहनी भी उपलब्ध न हो तो एक साफ कागज पर वट वृक्ष का पत्ती सहित चित्र बनाकर उसकी ही पूजा करते हुए रोली अक्षत अर्पित करें। माना जाता है ऐसा करने से भी ईश्वर का पूरा आशीर्वाद मिलता है।
ज्येष्ठ अमावस्या और शनि जयंती का महत्व...
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ज्येष्ठ अमावस्या पर शनि देव का जन्म हुआ था, इसलिए ज्येष्ठ अमावस्या का धार्मिक महत्व और भी बढ़ जाता है। वैदिक ज्योतिष में शनि देव सेवा और कर्म के कारक हैं, अतः इस दिन उनकी कृपा पाने के लिए विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। शनि देव न्याय के देवता हैं उन्हें दण्डाधिकारी और कलयुग का न्यायाधीश कहा गया है। शनि शत्रु नहीं बल्कि संसार के सभी जीवों को उनके कर्मों का फल प्रदान करते हैं।
MUST READ : शनि जयंती 2020 - सालों बाद बन रहा है ये दुर्लभ संयोग, जानिये क्या करें क्या नहीं

शनि जयंती पर ये करें...
वहीं शनि जयंती पर लॉकडाउन के चलते भक्त मंदिर तक नहीं जा सकेंगे, ऐसे में घर पर भी पूजन करने से उसका फल मिल सकेगा। इसके तहत शनि पूजन की किताब में छपे शनि देव के चित्र की उपासना पश्चिम की ओर मुंह करके करें। शनि चालीसा का पाठ व शनि मंत्र का जाप करें। काले तिल डाल कर तेल का दीपक जलाएं। इस दिन अपने आसपास के गरीबों को भोजन कराएं, वस्त्र आदि का दान करें। यदि घर के पास में ही पीपल का पेड़ हो तो वहां तेल का दीपक जलाएं। वहां भी शनि पूजन किया जा सकता है।
भूलकर भी न करें ये...
शनि जयंती पर बाल व नाखून ना काटें। माना जाता है कि ऐसा करने से आर्थिक तरक्की रुक जाती है। अमावस्या के दिन पीपल की पूजा करने से शुभ फल प्राप्त होते हैं लेकिन शनिवार के अलावा अन्य दिन पीपल का स्पर्श नहीं करना चाहिए इसलिए पूजा करें लेकिन पीपल के वृक्ष का स्पर्श ना करें। इससे धन की हानि होती है। इस दिन पैसे के लेन-देन से बचें। किसी से कर्ज बिल्कुल ना लें। शनि अमावस्या के दिन शारीरिक संबंध ना बनाएं। संयम बरतें।
MUST READ : यहां पत्नी संग विराजमान हैं भगवान शनिदेव, पांडव कालीन है ये मंदिर

वट सावित्री व्रत पूजा विधि...
वट सावित्री का व्रत करवा चौथ की तरह ही पति की लंबी आयु के लिए किया जाता है, केवल इस दिन की जाने वाली पूजा की विधि अलग होती है। इस दिन की पूजा की विधि जगह के अनुसार अलग-अलग होती है।
जानें पूजा की विधि –
: वट सावित्री के दिन सुहागिन स्त्रियां प्रातःकाल उठकर स्नान आदि करें।
: इसके बाद नए या साफ़ वस्त्र पहनकर, 16 श्रृंगार कर लें।
: अब पूजा की सारी सामग्री को लेकर एक वट (बरगद) के पेड़ के नीचे जाएं। लेकिन जैसा कि हम सभी जानते हैं कि बाहर निकलना अभी सही नहीं है, इसीलिए आप वट वृक्ष के तस्वीर को सामने रखकर उसकी पूजा करें।
: पेड़ के नीचे या पेड़ के चित्र को जहां रखा है वहां सफाई करें और अपनी सभी पूजा की सामग्री को वहां रखें।
MUST READ : लुप्त हो जाएगा आठवां बैकुंठ बद्रीनाथ - जानिये कब और कैसे! फिर यहां होगा भविष्य बद्री...

: सत्यवान-सावित्री और यमराज की फोटो को वट वृक्ष के नीचे स्थापित करें।
: अब लाल कपड़ा, फल, फूल, रोली, मोली, सिन्दूर, चना आदि से उनकी पूजा करें और उन्हें अर्पित करें।
: पूजा के बाद लकड़ी / बांस के पंखें से उन्हें हवा करें।
: इसके बाद पेड़ में 5, 11, 21 या जितना संभव हो धागे को लपेटते हुए परिक्रमा करें।
: परिक्रमा लगाने के बाद कथा पढ़ें और वृक्ष की जड़ में जल अर्पित करें। ये सभी प्रक्रिया आप वट वृक्ष के चित्र के साथ भी करें।
: घर लौटने के बाद पति के हाथ से पानी पी कर व्रत खोलें।
: पूजा के चने को प्रसाद के रूप में सबको बांट दें।
: पूरे दिन उपवास रखने के बाद शाम के समय मीठा भोजन करें।
MUST READ : यदि सपने में आएं हनुमानजी, तो जानें क्या होने वाला है आपके साथ

from Patrika : India's Leading Hindi News Portal https://ift.tt/2ALMD2p