15 मई को वट सावित्री अमावस्या, बरगद के पेड़ का पूजन करने का है विधान - jeevan-mantra

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Friday, May 11, 2018

15 मई को वट सावित्री अमावस्या, बरगद के पेड़ का पूजन करने का है विधान

   

15 मई को वट सावित्री अमावस्या है। इस दिन सुहागिन स्त्री वट यानी बरगद के पेड़ को पूज कर करती हैं। कई जगह ये त्योहार 3 दिन तक मनाया जाता है। बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में तो इसका खास स्थान है। उद्देश्य होता है पति की लंबी आयु। पेड़ से ही लंबी आयु का वरदान क्यों? ज्येष्ठ मास की गरमी में ही क्यों? पति की लंबी आयु के लिए ही क्यों?
ऐसे कई सवाल उठ सकते हैं। ये लाजिमी भी है। युवा पीढ़ी तर्क प्रिय है, तर्क संगत बातें ही इनके लिए सत्य से निकट हैं, जिनका कोई तर्क नहीं होता उन बातों को माइथोलॉजी के कोने में सरका दिया जाता है। वास्तव में हमारा कोई व्रत या त्योहार तर्क की रडार से बाहर नहीं है। सभी लॉजिकली और साइंटिफिकली बनाए गए हैं।

पहला कारण

वट सावित्री व्रत क्यों किया जाता है? वास्तव में ये प्रकृति की पूजा का एक तरीका है। ज्येष्ठ महीना अपनी तेज चिलचिलाती गर्मी के लिए जाना जाता है। वटवृक्ष यानी बरगद का पेड़ ऐसा है जो सबसे घना होता है। ज्येष्ठ की तपन से ये राहत दिलाता है। गांवों में बरगद के पेड़ों को इसीलिए पूजा जाता रहा है क्योंकि ये जानलेवा गरमी में जीवनदायी छांव प्रदान करते हैं।

दूसरा कारण

पति के लिए लंबी उम्र का वरदान इस पेड़ से इसलिए मांगा जाता है क्योंकि ये पेड़ लंबी आयु का ही प्रतीक है। खुद बरगद के पेड़ की औसत आयु 300 साल के आसपास मानी गई है। इस पेड़ के अलावा कोई और कैसे उम्र का प्रतीक हो सकता है। मांगा जाता है जैसे तुम्हारी आयु है, जैसे तुम स्थायी हो, वैसे ही सुहाग की आयु और स्थायित्व दो। बरगद का ही पेड़ होता है जिस पर पतझड़ के मौसम का सबसे कम असर होता है। यानी ये विपरित समय में भी वैसा ही रहता है, जैसा वो है। इसलिए इसको पूजा जाता है, इसके गुण लिए जाते हैं।

तीसरा कारण

पौराणिक कथाओं की बात करें तो वो ज्येष्ठ अमावस्या का दिन ही था जब सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापिस ले लिए थे। बरगद के पेड़ की जो जटाएं होती हैं उन्हें सावित्री का रुप ही माना जाता है। सावित्री सुहागिन नारियों के लिए आदर्श पात्र है। जो ग्रंथ नहीं पढ़ते उन्होंने ने भी सती सावित्री का नाम तो सुना ही होगा। वो राजकुमारी जिसने ऐसे पुरुष से विवाह किया जिसकी मौत एक साल बाद होना तय थी, उसने सालभर व्रत-उपवास किए, उस दिन का इंतजार किया, जब यमराज उसके पति की देह से आत्मा को निकालने के लिए आए। सावित्री ने यमराज को बातों में उलझा दिया, अपने लिए राजपाठ, सुख समृद्धि और पुत्र का वरदान मांग लिया। यमराज ने तथास्तु कहा और उसने जवाब दिया कि अगर आप पति के प्राण ले लेंगे तो पुत्र कहां से होगा, यमराज को अपने वरदान के कारण सत्यवान के प्राण लौटाने पड़े। ज्येष्ठ मास की अमावस्या उसी इसी घटना की साक्षी है।


कहने का अर्थ ये है कि वट वृक्ष सावित्री के उस आस्था, विश्वास और पराक्रम का साक्षी है, जब उसने यमराज से अपने पति के प्राण वापस मांग लिए थे। ये दृढ़ निश्चय और अटूट आस्था का काम है, इस दौर में सबसे दृढ़ और अटूट बरगद का पेड़ है। इसलिए पूजनीय है। आस्था और विश्वास हो तो किस्मत को भी बदला जा सकता है, ये कहानी इसका प्रमाण है।


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