इस समय यहां पर हनुमान चालीसा पड़ने वाले को मालामाल होने से कोई नहीं रोक सकता - jeevan-mantra

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Saturday, December 1, 2018

इस समय यहां पर हनुमान चालीसा पड़ने वाले को मालामाल होने से कोई नहीं रोक सकता

गोस्वामी तुलसीदास जी ने जब भगवान श्री हनुमान जी के दिव्य चरित्र, उनकी लीलाएं एवं उनके महाशक्तिशाली गुणों को एक चालीसा के रूप में लिखा था, उसी समय, उसके लाभ, नियम एवं पाठ करने का समय भी निर्धारित कर दिया था । तभी से माना जाता हैं कि श्री हनुमान चालीसा को इस समय यहां पर पाठ करने से कहते है श्री हनुमान जी शीघ्र कृपा करते हैं, और ऐसे लोगों को हनुमान जी की कृपा से माला माल होने से कोई भी नहीं रोक पाता हैं ।

 

हनुमान चालीसा के बारे में गोस्वामी तुलसीदास जी ने स्पष्ट रूप से लिखा हैं कि इसका पाठ करके कोई भी अपने जीवन के सभी दुखों से छुटकारा पा सकता हैं । उसकी धन संबंधित समस्या, पारिवारिक समस्या, व्यापार, नौकरी की चिंता या न अन्य कोई समस्या ही क्यों न हो श्री हनुमान जी दूर कर ही देते हैं । श्री गोस्वामी जी कहते हैं मालामाल होने का एकमात्र यही अर्थ नहीं की व्यक्ति को केवल धन मिल जाये तो वही मालामाल कहलायेगा । वे कहते मालामाल का मतलब यह भी हैं कि जिनके उपर भगवान श्री हनुमान जी की विशेष कृपा हो जाती हैं, वास्तव ऐसा व्यक्ति ही मालदार या मालामाल कहलाता हैं, अर्थात उनके जीवन के सारे अभाव दूर हो जाते हैं ।

 

इस समय यहां पढ़े श्री हनुमान चालीसा
तुलसीदास जी कहते हैं कि हनुमान चालीसा को पड़ने का कोई एक निर्धारित समय नहीं किया जा सकता, क्योंकि हनुमान जी तो पूरे ब्रह्मांड में वायु से भी तेज गति से विचरण करते हुए अपने भक्तों की सहायता करते रहते हैं । इसलिए 24 घंटे में जिसे भी जिस भी समय जहां भी हो, कोई भी परेशानी या समस्या होने पर तुरंत हनुमान जी को सच्ची श्रद्धा से पुकारते हुए श्री हनुमान चालीसा का पाठ कम से कम 7 बार कर लें । ऐसा करने के बाद परिणाम कुछ ही समय में आपके सामने होगा ।

 

।। अथ श्री हनुमान चालीसा ।।
।। दोहा ।।
श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मन मुकुर सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥
बुद्धिहीन तनु जानिकै सुमिरौं पवनकुमार ।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार ॥

Hanuman Chalisa

।। चौपाई ।।

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर ।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥
राम दूत अतुलित बल धामा ।
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ॥
महावीर विक्रम बजरंगी ।
कुमति निवार सुमति के संगी ॥

कंचन बरन बिराज सुबेसा ।
कानन कुंडल कुंचित केसा ॥
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै ।
काँधे मूँज जनेऊ साजै ॥
शंकर सुवन केसरी नंदन ।
तेज प्रताप महा जग बंदन ॥

 

विद्यावान गुनी अति चातुर ।
राम काज करिबे को आतुर ॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।
राम लखन सीता मन बसिया ॥
सूक्ष्म रूप धरी सियहिं दिखावा ।
बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥

भीम रूप धरि असुर सँहारे ।
रामचन्द्र के काज सँवारे ॥
लाय सँजीवनि लखन जियाए ।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाए ॥
रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई ।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥

 

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं ।
***** कहि श्रीपति कंठ लगावैं ॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ।
नारद सारद सहित अहीसा ॥
जम कुबेर दिक्पाल जहाँ ते ।
कबी कोबिद कहि सकैं कहाँ ते ॥

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा ।
राम मिलाय राजपद दीन्हा ॥
तुम्हरो मन्त्र बिभीषन माना ।
लंकेश्वर भए सब जग जाना ॥
जुग सहस्र जोजन पर भानू ।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥

 

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥
दुर्गम काज जगत के जेते ।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥
राम दुआरे तुम रखवारे ।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥

सब सुख लहै तुम्हारी शरना ।
तुम रक्षक काहू को डरना ॥
आपन तेज सम्हारो आपै ।
तीनौं लोक हाँक ते काँपे ॥
भूत पिशाच निकट नहिं आवै ।
महाबीर जब नाम सुनावै ॥

 

नासै रोग हरै सब पीरा ।
जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥
संकट तें हनुमान छुड़ावै ।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥
सब पर राम तपस्वी राजा ।
तिन के काज सकल तुम साजा ॥

और मनोरथ जो कोई लावै ।

सोहि अमित जीवन फल पावै ॥
चारों जुग परताप तुम्हारा ।
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥
साधु संत के तुम रखवारे ।
असुर निकंदन राम दुलारे ॥

 

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता ।
***** बर दीन्ह जानकी माता ॥
राम रसायन तुम्हरे पासा ।
सदा रहो रघुपति के दासा ॥
तुम्हरे भजन राम को पावै ।
जनम जनम के दुख बिसरावै ॥

अंत काल रघुबर पुर जाई ।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥
और देवता चित्त न धरई ।
हनुमत सेइ सर्व सुख करई ॥
संकट कटै मिटै सब पीरा ।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ३६ ॥

 

जय जय जय हनुमान गोसाईं ।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥
जो शत बार पाठ कर कोई ।
छूटहि बंदि महा सुख होई ॥
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा ।
होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥

।। दोहा ।।
पवनतनय संकट हरन मंगल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप ॥

।। श्री हनुमान चालीसा समाप्त ।।



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