शिव जी के कई स्वरुप हैं। वैसे तो भोलेनाथ जी अपने नाम के अऩुसार भोले हैं और वे हमेशा शांत ही रहते हैं। लेकिन कहा जाता है की जब भी भोलेनाथ जी को गुस्सा आता है तो वह विनाशकारी आता है। वहीं शव जी के दो रुपों का शास्त्रों व पुराणों में उल्लेख है। उनका पहला रुप विश्वेश्वर स्वरुप बहुत ही सौम्य और शान्त है जो की भक्तों का उद्धार करने वाला रुप माना जाता है। वहीं दूसरा काल भैरव स्वरुप दुष्टों को दंड देने वाला रौद्र, भयानक, विकराल रुप माना जाता है। शिवपुराण के अनुसार मार्गशीर्ष अगहन माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भैरवअष्टमी पड़ती है। अगहन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भैरव रूप का अवतार हुआ था। अतः उन्हें साक्षात् भगवान शिव ही मानना जाता है।
कालाअष्टमी का महत्व
शिव पुराण में कहा हैं कि काल भैरव भोलेनाथ की ही स्वरुप हैं। भगवान शिव ने काल भेरव के अवतार को कालाष्टमी के दिन लिया था इसलिए इस दिन इनकी पूजा अर्चना की जाती है। दुष्टों का नाश करने के लिए भगवान शिव को अपना रौद्र रुप भैरव अवतार लेना पड़ा। घर में नकारत्मक ऊर्जा, जादू-टोने, भूत-प्रेत आदि का भय नहीं रहता। कालभैरव भगवान शिव के अंश होने के कारण भैरव अष्टमी पर बाबा भैरव की पूजा करने से सारे कष्ट मिट जाते है और जाने -अनजाने में हुए सारे पापों से मुक्ति मिल जाती हैं। ऐसी मान्यता हैं काल भैरव की पूजा करने और व्रत रखने से सभी प्रकार की बाधाओं से मुक्ति मिल जाती हैं साथ ही भूत पिशाच का कभी डर नहीं रहता हैं। इस दिन साधक भैरव जी की पूजा व अर्चना करके तंत्र-मंत्र की विद्याओं को हासिल करने के लिए तांत्रिक पूजा भी करते हैं।
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