तर्क भ्रान्ति लाती है कि रोटी-रोटी करने से पेट थोड़े ही भरता है ? पर विश्वास करो, भगवन्नाम रोटी की तरह जड़ शब्द नहीं है । यह शब्द ही ब्रह्म है । नाम और नामी में कोई अन्तर ही नहीं है । जिस प्रकार अग्नि में दाहिकाशक्ति स्वाभाविक है, उसी प्रकार भगवन्नाम में पाप को- विषय-प्रपंचमय जगत् के मोहको जला डालने की शक्ति स्वाभाविक है- विषय भाव की आवश्यकता नहीं है । किसी भी प्रकार नाम जीभ पर आना चाहिये, फिर नाम का जो स्वाभाविक फल है, वह बिना श्रद्धा के भी मिल ही जायगा । देखो- नाम भगवत्स्वरूप ही है । नाम अपनी शक्ति से, नाम अपने वस्तुगुण से सारा काम कर देगा । विशेषकर कलियुग में तो भगवन्नाम के सिवा और कोई साधन ही नहीं है ।
मनोनिग्रह बड़ा कठिन है- चित्त की शान्ति के लिये प्रयास करना बड़ा ही कठिन है । पर भगवन्नाम तो इसके लिये भी सहज साधन है । बस, भगवन्नाम की जोर से ध्वनि करो । लेकिन आलस्य और तर्क- ये दो नाम जप में बाधक हैं । अभ्यास बना लो, नाम लेने की आदत डाल लो, फिर देखों भगवन्नाम का चमत्कार । ‘नाम लेत भव सिंधु सुखाहीं’ इस पर श्रद्धा करो । इस विश्वास को दृढ़ करो । निश्चय समझो- नाम के बल से बिना ही परिश्रम भवसागर से तर जाओगे और भगवान् के प्रेम को भी प्राप्त कर लोगे । देखों भगवान् नित्य हमारे पास हैं, अत्यन्त समीप हैं । भगवान् के बल से सभी कुछ सम्भव है, सभी विपत्तियाँ हट सकती हैं । सारी लंका जल गयी, पर हनुमानजी की पूँछ नहीं जली, क्योंकि सीता मैया ने पूँछ नहीं जलने का संकल्प जो कर लिया था । हनुमानजी को गरमी तक का अनुभव नहीं हुआ ।
आधुनिक जगत् के, बहुत-से लोग कहेंगे, यह बनावटी बात है । पर निश्चय मानो, भगवान् का आश्रय होने पर पूँछ में आग लगकर भी पूँछ न जले, यह सर्वथा सम्भव हैं । अवश्य ही सच्चा भक्त अपनी ओर से इस प्रकार के चमत्कार की इच्छा नहीं रखता । हम लोग तो मामूली अनिष्ट के भी टल जाने की चाह कर बैठते हैं । निरन्तर भगवान् का नाम लो, कीर्तन करों, मेरे विचार से सर्वोत्तम साधन यही है । भगवान् पर विश्वास हो, उनकी कृपा का भरोसा हो और नाम-जप होता रहे तो अपने-आप ही निर्भयता आयेगी, साहस आयेगा, विपत्ति का टलना भी इसी उपाय से होगा । किस चीज की प्राप्ति में हमारा भला है, इस बात को ठीक-ठीक से केवल भगवान् ही जानते हैं । इसलिए भगवान् के ऊपर योगक्षेम का भार छोड़ देने में ही परम लाभ है । भगवान् जब, जो, जैसे करें, वैसे ही होने दो, उसी में तुम्हारा परम कल्याण हैं ।
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