उत्पन्ना एकादशी 2018: बहुत खास है इस माह की एकादशी, इसी दिन से हुई थी व्रत की शुरुआत - jeevan-mantra

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Friday, November 30, 2018

उत्पन्ना एकादशी 2018: बहुत खास है इस माह की एकादशी, इसी दिन से हुई थी व्रत की शुरुआत

एकादशी का हिंदू धर्म में बहुत महत्व माना गया है। इन सभी में उत्पन्ना एकादशी का अपना अलग ही महत्व है। एकादशी का दिन भगवान विष्णु को समर्पित होता है और इस दिन उनकी पूजा विधि विधान से की जाती है। इस एकादशी का नाम उत्पन्ना एकादशी इसलिए पड़ा क्योंकि इस दिन देवी एकादशी उत्पन्न हुई थी। यह बात बहुत ही कम लोग जानते हैं लेकिन यह देवी भगवान विष्णु द्वारा उत्पन्न हुई थीं, इसलिए उनका नाम उत्पन्ना पड़ा था। तभी से एकादशी व्रत शुरु हुआ था। इस एकादशी के पीछे एक पौराणिक कथा बताई गई है, जिसे व्रत के बाद पढ़ने से ही व्रत पूर्ण माना जाता है। आइए जानते हैं उत्पन्ना एकादशी व्रत की पौराणिक कथा....

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उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा

साल के हर महीनों में कुल 24 एकादशियां आती हैं, लेकिन जिस साल में मलमास या अधिकमास पड़ता है उस साल कुल 26 एकादशी पड़ती है। इऩ्ही सब एकादशी में से सबसे पहली एकादशी मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशी यानी उत्पन्ना एकादशी को ही माना जाता है। क्योंकि इस दिन एकादशी प्रकट हुई थी।

एकादशी के जन्म लेने की कथा कुछ इस प्रकार है। सतयुग में एक चंद्रावती नगरी थी। इस नगर में ब्रह्मवंशज नाड़ी जंग राज किया करते थे। उनका एक पुत्र था, जिसका नाम था मुर। वह बलशाली दैत्य था और अपनी ताकत से देवताओं को परेशान कर रखा था। मुर से परेशान होकर सभी देवता भगवान शंकर के पास पहुंचे। सभी देवता गण ने अपनी व्यथा सुनाई और भगवान शंकर से मदद करने की गुहार लगाई। भगवान शंकर ने कहा कि इस समस्या का हल भगवान विष्णु के पास है। यह सुनकर सभी देवता भगवान विष्णु के पास पहुंचे। देवताओं ने अपनी व्यथा सुनाई। सारी कहानी सुनने के बाद भगवान विष्णु ने उन्हें आश्वासन दिया कि मुर की हार जरूर होगी। इसके बाद हजारों वर्षों तक मुर और भगवान विष्णु के बीच युद्ध होता रहा। लेकिन मुर ने हार नहीं मानी।

भगवान विष्णु को युद्ध के बीच में ही निद्रा आने लगी तो वे बद्रीकाश्रम में हेमवती नामक गुफा में शयन के लिए चले गए। उनके पीछे-पीछे मुर भी गुफा में चला गया। भगवान विष्णु को सोते हुए देखकर उन पर वार करने के लिये मुर ने जैसे ही हथियार उठाये श्री हरि से एक सुंदर कन्या प्रकट हुई जिसने मुर के साथ युद्ध किया। सुंदरी के प्रहार से मुर मूर्छित हो गया, जिसके बाद उसका सर धड़ से अलग कर दिया गया। इस प्रकार मुर का अंत हुआ। जब भगवान विष्णु नींद से जागे तो सुंदरी को देखकर वे हैरान हो गए। जिस दिन वह प्रकट हुई वह दिन मार्गशीर्ष मास की एकादशी का दिन था इसलिये भगवान विष्णु ने इनका नाम एकादशी रखा और उससे वरदान मांगने को कहा।

इस पर एकादशी ने कहा कि हे श्री हरि, आपकी माया अपरंपार है। मैं आपसे यही मांगना चाहती हूं कि एकादशी के दिन जो भी जातक व्रत रखें, उसके समस्त पापों का नाश हो जाए। इस पर भगवान विष्णु ने एकादशी को वरदान दिया कि आज से प्रत्येक मास की एकादशी का जो भी उपवास रखेगा उसके समस्त पापों का नाश होगा और विष्णुलोक में स्थान मिलेगा। भगवान श्री हरि ने कहा कि सभी व्रतों में एकादशी का व्रत मुझे सबसे प्रिय होगा। तब से आज तक एकादशी व्रत किया जाता रहा है।



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