शास्त्रों, पुराणों में उल्लेख आता हैं कि- पतित पावनी माँ गंगाजी का नाम लेने मात्र से सभी पाप धुल जाते हैं, और दर्शन व स्नान करने पर सात पीढ़ियों तक का उद्धार और पवित्र कर जन्म मृत्यु के बन्धनों से मुक्त कर देती । शास्त्रों में कथा आती हैं कि ऋषि भागीरथ जी ने कठोर तप कर अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए स्वर्ग लोक से माँ को धरती पर लाये थे और भगवान शिव जी ने गंगा जी को अपनी जटाओं में धारण किया था । फिर शिव की जटाओं से गंगा जी धरती पर अवतरित हुई, उस दिन ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि थी और उसी दिन से प्रतिवर्ष गंगा दशहरा मनाया जाता है ।
लेकिन इस वर्ष पुरषोत्तम माह होने के कारण गंगा दशहरा 24 मई को हैं, स्कंदपुराण के अनुसार गंगा दशहरे के दिन व्यक्ति को किसी भी पवित्र नदी पर जाकर स्नान, ध्यान तथा दान करना चाहिए, इससे वह अपने सभी पापों से मुक्ति पाता है, यदि कोई मनुष्य पवित्र नदी तक नहीं जा पाता तब वह अपने घर पास की किसी नदी पर स्नान करें ।
सप्तऋषियों, ऋषियों व अनेक साधु महात्माओं ने अपनी प्रचण्ड तपस्या के लिए दिव्य हिमालय की छाँव तले गंगा की गोद को तपस्थली के रूप में चुना । भगवान् राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न ने भी इसी दिव्य विशेषता से आकर्षित होकर गंगा किनारे तपस्या की थी । वस्तुतः हर दृष्टि से गंगा की महिमा एवं महत्ता अपरम्पार है । इसके स्नान-सान्निध्य से अन्तःकरण में पवित्रता का संचार होता है। मन को तुष्टि व शाँति मिलती है ।
24 मई गंगा दसमी पर करें यह उपाय
अग्नि पुराण में कहा गया हैं कि- जैसे मंत्रों में ऊँ कार, धर्मों में अहिंसा, कामनाओं में लक्ष्मी का कामना, नारियों में माता महागौरी उत्तम हैं, ठीक वैसे ही तीर्थों में सर्वश्रेष्ठ गंगा जी हैं, अगर गंगा दशमी के दिन कोई भी मनुष्य अपनी सर्व मनोकामनाओं की इच्छा से गंगा जी में 21, 51 या 108 की संख्या में डुबकी लगाकर स्नान करने के बाद शुद्ध सफेद वस्त्रों को धारण कर गंगा किनारे बैठकर- ।। ऊँ ह्रीं गंगादेव्यै नमः ।। मंत्र का 1008 बार जप करने से प्रसन्न होकर सभी प्रकार की मनोकामनाओं की पूर्ति मां गंगा करती है ।
पितृ भी होते है तृप्त
इस दिन अगर कोई अपने पूर्वज पितरों की मुक्ति के निमित्त- गुड़, गाय का घी और तिल शहद के साथ बनी खीर गंगा जी में डालते हैं तो डालने वालों के पितर सौ वर्षों तक तृप्त, प्रसन्न होकर अपनी संतानों को मनोवांछित फल प्रदान करते हैं ।
गंगा की महत्ता भारतीय धर्मशास्त्रों एवं पुराणों के पन्नों-पन्नों में बिखरी हुई मिलती है । महाभारत में गंगा को पापनाशिनी तथा कलियुग का सबसे महनीय जलतीर्थ माना गया है ।
- जैसे अग्नि इंधन को जला देती है । उसी प्रकार सैकड़ों निषिद्ध कर्म करके भी यदि गंगास्नान किया जाय तो उसका जल उन सब पापों को भस्म कर देता है । सतयुग में सभी तीर्थ पुण्यदायक-फलदायक होते हैं । त्रेता में पुष्कर का महत्त्व है । द्वापर में कुरुक्षेत्र विशेष पुण्यदायक है और कलियुग में गंगा की विशेष महिमा है ।
- जैसे अग्नि इंधन को जला देती है । उसी प्रकार सैकड़ों निषिद्ध कर्म करके भी यदि गंगास्नान किया जाय तो उसका जल उन सब पापों को भस्म कर देता है । सतयुग में सभी तीर्थ पुण्यदायक-फलदायक होते हैं । त्रेता में पुष्कर का महत्त्व है । द्वापर में कुरुक्षेत्र विशेष पुण्यदायक है और कलियुग में गंगा की विशेष महिमा है ।
देवी भागवत् में गंगा को पापों को धोने वाली त्राणकर्त्ती के रूप में उल्लेख किया गया है- गंगाजी का जल अमृत के तुल्य बहुगुणयुक्त पवित्र, उत्तम, आयुवर्धक, सर्वरोगनाशक, बलवीर्यवर्धक, परम पवित्र, हृदय को हितकर, दीपन पाचन, रुचिकारक, मीठा, उत्तम पथ्य और लघु होम है तथा भीतरी दोषों का नाशक बुद्धिजनक, तीनों दोषों को नाश करने वाले सभी जलों में श्रेष्ठ है । मान्यता है कि- औषधि जाह्नवी तोयं वेद्यौ नारायण हरिः । अर्थात्- आध्यात्मिक रोगों ( पाप वृत्तियों, कषाय-कल्मष ) की दवा गंगाजल है और उन रोगियों के चिकित्सक नारायण हरि परमात्मा हैं । जिनका उपाय-उपचार गंगा तट पर उपासना-साधना करने से होता है और अगर इस दिन माँ गंगा की विशेष आरती संध्या के समय की जाय तो पाप ताप व रोगों से मुक्ति मिलती हैं ।
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