भगवान शंकर को इसलिए प्रिय हैं भस्म - jeevan-mantra

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Thursday, May 24, 2018

भगवान शंकर को इसलिए प्रिय हैं भस्म




- हिंदू शास्त्रों में भगवान शंकर को देवताओं का भी देवता बताया गया है और सभी जानते हैं कि भगवान शंकर जी को भस्म बहुत प्रिय हैं इसलिए तो वे पूरे शरीर पर भस्म लगाए रहते हैं, केवल शिव ही नहीं उनके भक्त भी माथे पर भस्म का तिलक लगाते हैं, और कुछ औघड़ भक्त तो शिवजी की तरह ही पूरे शरीर पर भस्स लगाते हैं, शिव महापुराण में भस्म के संबंध में एक बहुत ही दिलचस्प कहानी का उल्लेख आता है कि- 

प्रनद नाम का एक संत था जो घोर कठिन तपस्या करने बाद बहुत शक्तिशाली हो गया था, वह केवल फल और हरी पत्तियां खाते थे इसलिए उनका नाम प्रनद पड़ गया था, अपनी तपस्या के बल पर उस संत ने जंगल के सभी जीव-जंतुओं अपने वश में कर लिया था, वह संत एक बार अपनी कुटिया बनाने के लिए लकड़ी काट रहे थे, तभी उनकी अंगुली कट गई, संत देखकर हैरान हो गया कि उसकी अंगुली से खून बहने के बजाए पौधे का हरा रस निकल रहा है ।



bhagwan shankar


- इस घटना के बाद संत को घमंड और अहंकार हो गया कि उसके शरीर में खून नहीं बल्कि पौधों का रस भरा हुआ है, और वह अपने आप को खुशी के मारे दुनिया का सबसे पवित्र मनुष्य मानने लगा, भगवान शंकर को जब इसका पता चला तो वे संत का घमंड तोड़ने के लिए भगवान ने एक बूढ़े मनुष्य का रूप धारण किया और उस संत के पास पहुंच गए । 

वेशधारी भगवान शंकर ने संत से पूछा कि वह इतना खुश क्यों है? संत ने सारी घटना बता दी, सब कुछ जानकर भगवान ने पूछा कि ये पौधों और फलों का मात्र रस ही तो है, लेकिन सोचो जब पेड़-पौधे जल जाते हैं तो वह भी राख बन जाते हैं, अंत में केवल राख का ढेर ही शेष रह जाता है, और फिर वेशधारी शिव ने तुरंत अपनी अंगुली काटकर दिखाई और उससे राख निकली.

संत को एहसास हो गया कि उनके सामने स्वयं भगवान शंकर ही खड़े हैं, संत ने अपनी अज्ञानता और अहंकार के लिए भगवान से क्षमा मांगते हुए भगवान के शरीर पर संत स्वयं के शरीर की भस्म का लेप शिव जी के शरीर पर करने लगा, संत के द्वारा ऐसा किए जाने से भगवान शंकर प्रसन्न होकर वरदान दिया की आज से जो भी मेरे शरीर पर श्रद्धा व पवित्रता के साथ भस्म लगायेगा वह मेरी कृपा का अधिकारी होगा । 

कहा जाता है कि तब से ही भगवान शिव अपने शरीर पर भस्म लगाने लगे ताकि उनके भक्त इस बात को हमेशा याद रहें, शारीरिक सौंदर्य का अहंकार ना करें बल्कि अंतिम सत्य को याद रखें ।


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