हिन्दू पुराणों में भक्तों की सुविधा के लिए यह बताया गया है कि कौन से देवी-देवताओं को कौन सा भोजन, कौन सा पुष्प और कौन सा रंग सबसे प्रिय है। जिसके आधार पर उनके भक्त उनके बारे में बेहतर तरीके से जान पाते हैं और अपने आराध्य को प्रसन्न रखने की कोशिश कर पाते हैं। देवी-देवताओं के किसी भी मंदिर या उनसे जुड़ी कहानियों और तस्वीरों में हम हमेशा उन्हें किसी खास तरह के पशु या पक्षी को उनके वाहन के तौर पर देखा होगा। शिव के नंदी हो या, मां दुर्गा के शेर, भगवान विष्णु के गरूढ़ से लेकर इंद्र के ऐरावत हाथी तक, लगभग सभी देवी-देवताओं को हमने पशु या पक्षी पर सवार ही देखा हैं।
क्या आपने कभी सोचा है की भगवान को वाहन की जरुरत क्यों पड़ी जबकी वे अपनी दिव्यशक्तियों से कहीं भी आसानी से कहीं भी आ जा सकते हैं। फिर भी उनको पशु या पक्षी की आवश्यकता पड़ी। दरअसल भगवानों के साथ जानवरों को जोडऩे के पीछे कई कारण हैं। भारतीय मनीषियों ने भगवानों के वाहनों के रूप में पशु-पक्षियों को जोड़ा है। असल में देवताओं के साथ पशुओं को उनके व्यवहार के अनुरूप जोड़ा गया है और पशुओं की रक्षा के कारण भी उन्हे भगवान के साथ जोड़ा गया है यदि उन्हे नहीं जोड़ा जाता तो शायद पशु के प्रति हिंसा का व्यवहार ज्यादा हो जाता।
वैसे देखने में तो यह वाहन हमारे लिए काफी सामान्य लगते हैं, लेकिन देवी-देवताओं ने कुछ ही पशु या पक्षी को विशेष रुप में क्यों चुना, इसके पीछे कई रहस्य छिपे हुए हैं। आइए जानते हैं प्रसिद्ध देवी-देवताओं और उनके वाहनों के पीछे छिपी कहानी के बारे में।
शेर : मां दुर्गा की सवारी
दुर्गा को शक्ति का स्वरुप माना जाता है। और मां की सवारी सिंह होता है, सिंह स्वयं शक्ति, बल, पराक्रम, और क्रोध का कारक होता है। शेर की यह सभी विशेषताएं मां दुर्गा के स्वभाव में मौजूद हैं। मां दुर्गा की हुंकार भी शेर की दहाड़ की ही तरह इतनी तेज है, जिसके आगे कोई भी आवाज सुनाई नहीं देती।
नंदी : भगवान शंकर की सवारी
भोलेनाथ बहुत शक्तिशाली होने के बावजूद बहुत शांत और संयमित रहते है। नंदी बैल भगवान शिव का वाहन है, उनके गणों में वह सर्वश्रेष्ठ माना गया है। बैल बहुत ताकतवर और शक्तिशाली होने के बावजूद शांत रहते हैं जो की भोलेनाथ के स्वभाव में दिखता है। इसके अलावा नंदी के चार पैर हिन्दू धर्म के चार स्तंभ, क्षमा, दया, दान और तप के प्रतीक हैं। नंदी सफेद रंग का बैल है जो स्वच्छता और पवित्रता का प्रतीक माना गया है।
मोर : कार्तिकेय की सवारी
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान कार्तिकेय की तपस्या और साधक क्षमताओं से प्रसन्न होकर स्वयं भगवान विष्णु ने उन्हें यह वाहन भेंट किया था। मोर चंचलता का प्रतीक है और उसे अपना वाहन बनाना इस बात को दर्शाता है कि कार्तिकेय ने अपने मोरे रूपी चंचल मन को अपने वश में कर लिया है।
हंस : देवी सरस्वती की सवारी
सांकेतिक भाषा में हंस जिज्ञासा और पवित्रता का प्रतीक कहा जा सकता है। ज्ञान की देवी सरस्वती को हंस से बेहतर और कोई वाहन मिल भी नहीं सकता था। मां सरस्वती का हंस पर विराजित होना इस बात को दर्शाता है कि ज्ञान के जरिए ही जिज्ञासा को शांत किया जा सकता है।
गरुड़ : भगवान विष्णु की सवारी
भगवत् गीता में इस बात का उल्लेख मिलता है कि भगवान विष्णु के भीतर ही समस्त सृष्टि का निवास है, वे सबसे ताकतवर हैं। गरुड़ देव को भी अधिकार और दिव्य शक्तियों से लैस दर्शाया गया है।
उल्लू : धन की देवी लक्ष्मी की सवारी
उल्लू शुभता और संपत्ति का भी प्रतीक है। कहा जाता है कि अत्याधिक धन-संपदा को प्राप्त कर व्यक्ति उल्लू (बुद्धिहीन) हो जाता है। इसलिए देवी लक्ष्मी और उल्लू साथ-साथ चलते हैं। उल्लू दिन में नहीं देख पाता, वह रात का जीव है। यह इस बात की ओर इशारा करता है कि लक्ष्मी जी की कृपा व्यक्ति को अंधकार से मुक्त कर सकती है।
मूषक (चूहा) : श्री गणेश की सवारी
मूषक का अर्थ चूहा होता है, भगवान गणेश को बुद्धि के देवता माना जाता है। और उनकी सवारी चूहा है, दरअसल चूहा हर चीज को कुतर देता है, बह बिना सोचे समझे हर कीमती चीज़ या अनमोल चीज को कुतर देता है, वह उसे नष्ट कर देता है। इसी तरह बुद्धिहीन और कुतर्की व्यक्ति भी बिना सोचे-समझे, अच्छे-बुरे हर काम में बाधा उत्पन्न करते हैं। श्री गणेश ने मूषक पर सवारी कर कुतर्कों और अहित चाहने वाले लोगों को वश में किया है।
गाय : भगवान श्री कृष्ण की सवारी
श्री कृष्ण को ग्वाला कहते है क्योंकि उन्हें बचपन से ही गायों से काफी प्रेम रहा है। कृष्ण की हर तस्वीर में आपको उनके आसपास गाय भी जरूर नजर आएगी। यह कहना गलत नहीं होगा कि कृष्ण का चित्र गाय की तस्वीर के बगैर पूरा नहीं लगता। शायद इसके पीछे भारत के ग्रामीण इलाकों की झलक दिखाना ही उद्देश्य रहा होगा।
हनुमान जी पिशाच के आसन पर बैठते हैं
हनुमानजी की आराधना हर बुरी ताकत और शक्तियों से बचाती है। हनुमानजी को पिशाच के आसन पर बैठते हैं। प्रेत, पिशाच या अन्य कोई भी बुरी आत्मा दुःख और तकलीफ को दर्शाती है। हनुमान इन सभी बुरी आत्मा और दुखों को अपना आसन बनाकर इनके ऊपर विराजित होते हैं।
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